भागवत कथा के चौथे दिन श्रीकृष्ण जन्मोत्सव में भाव विभोर हुए श्रद्धालु
श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के सोहर पर झूमे श्रद्धालु, पुष्प वर्षा कर बांटी मिठाईयां
भानपुर, बस्ती। तहसील क्षेत्र के वैष्णों माता मंदिर परिसर ग्राम कोठिला में चल रहे सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चौथे दिन कथाव्यास पं श्रीबालकृष्ण आशीष जी महाराज ने वामन अवतार का प्रसंग सुनाया।
श्री बालकृष्ण महाराज आशीष जी ने राजा अम्बरीष और दानवीर राक्षसराज बलि की भी कथा सुनाई। भगवान के वामन अवतार का प्रत्यक्ष दर्शन उपस्थित लोगों को हुआ। भगवान के वामन अवतार के रूप में बाल स्वरूप में मनमोहक छवि वाले बालक को देखकर लोग मंत्रमुग्ध हो गए। श्रीमद् भागवत कथा में चौथे दिन कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बड़े आनंद और हर्षोल्लास के साथ धूम-धाम से मनाया गया। श्री बालकृष्ण आशीष जी ने श्रीमद्भागवत कथा के माध्यम से लोगों में भगवान के प्रति भक्ति का संचार करने का प्रयास किया। उन्होंने राजा अम्बरीष के विषय में बताया कि उनका मन सदा के लिए कृष्ण के श्री चरणकमलों में लगा हुआ था, वाणी उन्हीं के गुणानुवाद (गुणों के वर्णन) में लगी रहती थी। जिनके हाथ जब भी उठते श्रीभगवान के मंदिर की सफाई के लिए ही उठते और कान सिर्फ भगवान की कथा सुनने को आतुर रहते थे। उनकी आंखें सदैव हरि मूर्ति दर्शन को प्यासी रहती थीं और अपने शरीर से भक्तों की सेवा में ही लगे रहना चाहते थे। उनकी नासिका भगवान के श्रीचरणों में चढ़ी हुई श्रीमती तुलसी देवी के सुगन्ध लेने में तथ् अपनी जिह्वा के स्वाद के लिए भगवान को अर्पित नैवेद्य के स्वाद में लगा दिया। अपने पैरों को उन्होंने तीर्थ दर्शन हेतु पैदल चलने में लगा दिया और सिर तो सदैव भगवान के श्रीचरणों में झुके ही रहते थे। माला, चन्दनादि जो भी दिखावे अथवा भोग सामग्रियां थीं, वे सब उन्होंने भगवान के श्रीचरणों में अथवा अलंकार हेतु समर्पित कर दिया और भोग भोगने अथवा भोगों की प्राप्ति हेतु नहीं, अपितु भगवत्वरणों में निर्मल भक्ति की प्राप्ति हेतु अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। ये होती है निर्मल भक्ति का स्वरूप जो शास्त्रानुसार है।
व्यासपीठ से श्रीबालकृष्ण आशीष जी ने कहा कि उनका यही स्वभाव दुर्वासा जैसे ऋषि के ऊपर भी एक बार भारी पड़ गया। वो हुआ यूं कि एक दिन दुर्वासा जी भोजनार्थ अपने सहस्रों शिष्यों के साथ राजा अम्बरीष जी के यहां पहुंचे। उस दिन द्वादशी थी, अर्थात एकादशी का पारण और समस्या ऐसी थी कि थोड़ी ही देर में अर्थात जल्द ही त्रयोदशी लगने वाली थी और पारण द्वादशी में ही करना होता है। प्रदोष लगने से पहले। अब दुर्वासा ऋषि को ये बात ज्ञात थी, फिर भी वो लेट हो रहे थे। अब अम्बरीष जी ने अपने पुरोहित से पूछा कि प्रभु ये बताएं कि दरवाजे पर कोई अतिथि आया हो, तो हम बिना उन्हें भोजन करवाए स्वयं पारण कैसे कर सकते और न करें, तो मुहूर्त निकला जा रहा है, ऐसे में हम करें तो क्या करें।
इस मौके नंद घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की.. जैसे बधाई गीतों पर पूरा पंडाल पीला वस्त्र में भक्त जन नाचते गाते नजर आए। कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ। भगवान कृष्ण जन्मोत्सव में नन्हें बालक ने भगवान कृष्ण का रूप धारण कर उपस्थित श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। सभी ने कृष्ण जन्म का आनंद लिया। कथा वाचक श्रीबालकृष्ण आशीष जी के भजन पर नृत्य करते हुए पुष्प वर्षा कर मिठाईयां बांटी गई। उन्होंने बताया कि जब-जब पृथ्वी पर कोई संकंट आता है, दुष्टों का अत्याचार बढ़ा है तो भगवान अवतरित होकर उस संकट को दूर करते हैं। भगवान शिव और भगवान विष्णु ने कई बार पृथ्वी पर अवतार लिए हैं। भक्तों की पुकार पर दैत्य दानवों के संहार के लिए भगवान स्वयं धरती पर प्रकट हुए और दुष्टों का हर युग में संहार किया।
इस मौके पर मुख्य यजमान बजरंगी प्रसाद शर्मा, पुष्पा शर्मा, जामवंती शर्मा, आचार्य भूषण दास, आचार्य कपिल मुनि, आचार्य धीरज, पंडित हर्ष, पंडित प्रकाश एवं पंडित सियाराम के द्वारा वेदमंत्रों के उच्चारण से वातावरण भक्तिमय हुआ। श्रोताओं में उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के उपाध्यक्ष महेश शुक्ल, गिरीश पांडेय, विनोद शुक्ल, राजाराम तिवारी, राजेश पांडेय, एडवोकेट राजेश तिवारी, अभिषेक शर्मा, शिवप्रसाद पांडेय, श्रीपाल शर्मा, उमाकांत शुक्ल, सुरेंद्र सिंह, रोहित शर्मा, केशवराम पांडेय, नितेश शर्मा, चंद्रभूषण, राजेश उपाध्याय, विवेक उपाध्याय, संतोष पांडेय, बृजेश पांडेय, रौनक दूबे, विनय दूबे, रिंकू शर्मा, जनकनंदिनी, विवेक शर्मा, कामिनी देवी, प्रेमनंदिनी, पूनम, संदीप चौहान, प्रमोद प्रजापति, राम गोपाल रावत, रामभारत यादव, आशीष चौधरी, आकाश चौधरी, बाबूराम चौरसिया, फूलराम वर्मा, आशुतोष शुक्ल मौजूद रहे।
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