रूक्मिणी और कन्हैया का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन श्रीमद्भागवत कथा
बस्ती । परमात्मा की चाह में विरह ही तो भक्ति की प्रतिष्ठा है। जो ईश्वर से मिलना चाहता है उसे अपना जीवन सादा रखना चाहिये। राजकन्या होते हुये भी रूक्मिणी पार्वती जी के दर्शन के लिये पैदल ही गयी। रूक्मिणी और कन्हैया का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन है। यह सद् विचार आचार्य अनिरूद्ध जी महाराज ने राजेश्वरी मिश्रा प्राकृतिक कृषि फार्म दुबखरा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के पांचवे दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि परमात्मा को बश में करने का सर्वोत्तम साधन है प्रेम। कन्हैया ने कभी जूते नहीं पहने, गायों की जैसी सेवा उन्होने किया शायद ही कोई कर सके। गाय में सभी देवों का वास है, गाय सेवा से अपमृत्यु टल सकती है। बासुरी का महत्व बताते हुये महात्मा जी ने कहा कि बांसुरी अपने स्वामी के इच्छानुसार ही बोलती है। इसलिये भगवान की जो इच्छा हो वही बोलना चाहिये।
विविध प्रसंगो के क्रम में महात्मा जी ने कहा कि ईश्वर के लिये जो जीता है वही सन्यासी है। गोपियां ईश्वर के लिये जीती थी इसलिये उन्हें प्रेम सन्यासिनी कहा गया। प्रभु प्रेम में हृदय का द्रवित होना ही तो मुक्ति है। कृष्ण कथा और बासुरी का श्रवण करते समय चाहें आंखे खुली ही क्यों न हो समाधि लग जाती है। कृष्ण कथा में प्राणायाम करने की कोई आवश्यकता नही है यह जगत को भुला देती है। मिठास प्रेम में होती है, बस्तु में नहीं। स्वाद गोपियों के माखन में नहीं प्रेम में था। यशोदा के हृदय में बसा हुआ कन्हैया जागा है किन्तु हमारे हृदय का कन्हैया सोया हुआ है। जब तक परमात्मा को प्रेम से न बाधा जाय संसार का बन्धन बना रहता है। ईश्वर को फल दोगे तो वे तुम्हें रत्न देंगें। पाप के जाल से छूटना आसान नही है, जब तक पुण्य का बल बढता नही पाप की आदत नहीं छूटती।
कथा क्रम में भक्त प्रहलाद, कुन्ती की भक्ति और भीष्म का प्रेम, राधा के त्याग, गोकुल भूमि की महिमा और ग्वाल बाल गोपिकाओं का श्री कृष्ण के प्रति समर्पण, महारास के आध्यात्मिक विन्दुओं का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि संसार में कुन्ती जैसा बरदान किसी ने नहीं मांगा । कुन्ती ने कन्हैया से दुःख मांगा जिससे उनका कन्हैया उनसे दूर न जाय। आजकल तो लोग भगवान से केवल सुख मांगते हैं किन्तु बिना दुख के साधना पूर्ण ही नही हो सकती।
गोपाल शर्मा, लक्ष्मण, आशीष ने भक्ति गीतों से वातावरण को आध्यात्मिक हो गया है। यज्ञाचार्य योगेश शुक्ल और मनीष मिश्र ने विधि विधान से पूजन कराया।
श्रीमद्भागवत कथा के क्रम में मुख्य यजमान कर्नल के.सी. मिश्र, ने विधि विधान से व्यास पीठ का पूजन अर्चन किया। मुख्य रूप से राम नरेश सिंह मंजुल, अशोक मिश्र, दिनेश मिश्र एस पी सिंह, राम जी मिश्र राजाराम गुप्ता राम बृक्ष मिश्र , महेन्द्र मिश्र राजपति, अंकुर यादव, राधेश्याम यादव, रंजीत मिश्र, कर्नल मिथुन मिश्र, रामवृक्ष मिश्र, लालजी मिश्र, बजरंगी मिश्र, डा. सत्यनरायन मिश्र, डा. अवध नरायन मिश्र, दिग्विजय, रविन्द्र, आनन्द, कृष्ण कुमार पाण्डेय, आर.के. शुक्ल, सुशील मिश्र, आर.के. शुक्ल, आर.के. त्रिपाठी, कुसुम मिश्रा, अनुराधा पाण्डेय, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।
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