24 C
en

जो नीति के अधीन रहेगा उसे ब्रम्हानन्द प्राप्त होगा - श्रीमद्भागवत कथा

 


बस्ती । जिसका जीवन शुद्ध और पवित्र है उसी को भजनानन्द मिलता है। जो पवित्र जीवन जीता है उसे ही ईश्वर का ज्ञान मिलता है। सुनीति का फल धु्रव है। जो नीति के अधीन रहेगा उसे ब्रम्हानन्द प्राप्त होता है। यह सद् विचार आचार्य अनिरूद्ध जी महाराज ने राजेश्वरी मिश्रा प्राकृतिक कृषि फार्म दुबखरा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन व्यासपीठ से व्यक्त किया।
महात्मा जी ने कहा कि राजा उत्तानपाद के दो रानियां और दो पुत्र थे, राजा को सुनीति नहीं सुरूचि ही प्यारी थी। सुरूचि का पुत्र राजा की गोद में बैठा था धु्रव ने भी पिता से अपनी गोद में बिठाने के लिये कहा। धु्रव को राजा गोद में बिठाये यह सुरूचि को पसन्द नहीं था। राजा ने सोचा की धु्रव को गोद में बिठाऊंगा तो रानी नाराज हो जायेगी। राजा ने धु्रव की अवहेलना की और मुख मोड़ लिया। धु्रव की मां सुनीति ने धु्रव से कहा कि मांगना ही है तो ठाकुर जी से मागो। मैने तुझे नारायण को सौंप दिया है। जो पिता तेरा मुंह तक नहीं देखना चाहता उसके घर पर रहना निरर्थक है। धुव अपनी विमाता से भी आशीर्वाद लेकर वन की ओर चल पड़ा। महात्मा जी ने कहा कि 5 वर्ष के बालक धु्रव को माता सुनीति तप के लिये भेजती है और आज कल की मातायें पुत्रों को सिनेमा देखने के लिये भेजती है।
धु्रव तपस्या का वर्णन करते हुये महात्मा जी ने कहा कि बालक माता के दोष के कारण चरित्रहीन, पिता के दोष के कारण मूर्ख, वंश दोष के कारण कायर और स्वयं दोष के कारण दरिद्र होता है। अधिकारी शिष्य को मार्ग में ही गुरू मिल जाते हैं। परमात्मा और सद्गुरू दोनो व्यापक है। सर्व व्यापी को खोजने की नहीं, पहचानने की आवश्यकता है। नारद जी की प्रेरणा से भक्त धु्रव ने वृन्दावन में यमुना नदी के तट पर  मधुवन में उपासना आरम्भ किया। भक्त धु्रव ने घोर तपस्या किया और जब देवगण ने नारायण से प्रार्थना किया कि आप धु्रव कुमार को शीघ्र दर्शन दीजिये तो भगवान ने देवो से कहा मैं धु्रव को दर्शन देने नहीं स्वयं धु्रव का दर्शन करने जा रहा हूं। धु्रव को दर्शन देते हुये भगवान ने कहा तू कुछ कल्पो के लिये राज्य का शासन कर इसके पश्चात तुझे  अपने धाम में ले चलूंगा। महात्मा जी ने कहा कि परमात्मा जिसे अपना बनाता है शत्रु भी उसकी बन्दना करते हैं। जो ईश्वर से सम्बन्ध जोड़ लेता है जगत उसी के पीछे दौड़ने लगता है। राजा उत्तानपाद ने पुत्र धु्रव को गले से लगा लिया और माता सुनीति को लगा कि आज ही वह पुत्रवती हुई है क्योंकि उसका पुत्र भगवान को प्राप्त करके आया है।  धुव्र ने भगवान की शरणागति स्वीकार किया तो भगवान ने उनको दर्शन, राज्य और वैकुण्ठवास भी दिया। गोपाल शर्मा, लक्ष्मण, आशीष ने भक्ति गीतों से वातावरण को आध्यात्मिक हो गया है। यज्ञाचार्य योगेश मिश्रा और मनोज शुक्ल विधि विधान से पूजन करा रहे हैं। इसी कड़ी में गीता जयन्ती के अवसर पर संगोष्ठी में विद्वानों ने विचार विमर्श किया।
श्रीमद्भागवत कथा के क्रम में मुख्य यजमान कर्नल के.सी. मिश्र, ने विधि विधान से व्यास पीठ का पूजन अर्चन किया। मुख्य रूप से स्वामी चिन्मयानन्द, योगेन्द्र मिश्र शास्त्री, डा. अम्बरीश मिश्र, डा. सूर्य    प्रकाश मिश्र, डा. भुवनेश्वर, मनीष सिंह, डा. अवध नरायन मिश्र, डा. दिलीप अस्थाना, डा. सी.एस. नायक, ऊषा सिंह, राजपति, अंकुर यादव, राधेश्याम यादव, रंजीत मिश्र, कर्नल मिथुन मिश्र, रामवृक्ष मिश्र, लालजी मिश्र, बजरंगी मिश्र, डा. सत्यनरायन मिश्र, डा. अवध नरायन मिश्र, दिग्विजय, रविन्द्र, आनन्द, कृष्ण कुमार पाण्डेय, आर.के. शुक्ल, सुशील मिश्र, आर.के. शुक्ल, आर.के. त्रिपाठी, कुसुम मिश्रा, अनुराधा पाण्डेय, सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। 
Older Posts
Newer Posts

Post a Comment