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राम वनगमन के भावुक मंचन पर नम हुई दर्शकों की आँखे

कैकेयी- दशरथ संवाद पर बजती रही तालियां व लगते रहे जयकारे





बस्ती। सनातन धर्म संस्था द्वारा आयोजित श्री रामलीला महोत्सव में 4 घण्टे तक भगवान श्री राम के जयकारे लगते रहे और लोगों ने सुंदर संवाद शैली पर खूब तालियां बजाई।
आज की लीला में जगदीश शुक्ल,राणा दिनेश प्रताप सिंह, राजकुमार शुक्ल, आशीष श्रीवास्तव, कृष्ण प्रजापति, नरसिंह नारायण दूबे, नरेंद्र सिंह, स्तुति मिश्र, प्रतिभा त्रिवेदी, विमल जी, पल्लवी श्रीवास्तव, कुलदीप सिंह,संजय उपाध्याय, उमंग शुक्ल, राजेश मिश्र, शैल सत्यार्थी जी ने भगवान की आरती की।
लीला के प्रथम भाग में ऊर्मिला एजूकेशनल एकेडमी के बच्चों द्वारा दिखाया गया कि महाराज दशरथ जी ने श्री राम के राज्याभिषेक का निर्णय लिया। जिसे सुनकर देवताओं को बड़ी चिंता हुई और उन्होंने इंद्र की अगुवाई में माता सरस्वती से निवेदन किया कि वह कुछ भी उपाय करके श्री रामजी के राज्याभिषेक को रोकें जिससे जन कल्याण हो सके। सरस्वती जी के प्रभाव से विमति हुई मंथरा ने रानी कैकेई को श्री राम को वनवास और भरत को राजगद्दी दिलाने के लिए समझाया। कैकेई-मंथरा संवाद के शानदार मंचन ने दर्शकों को मुग्ध कर दिया।
कैकेयी कोप भवन में चली जाती हैं। जिन्हें मनाने के लिए राजा दशरथ वहां पहुंचते हैं। राजा दशरथ को देखकर कैकेयी उनके द्वारा दिए गए वचनों की याद दिलाते हुए उनसे दो वर मांगती है। पहला भरत का राज्याभिषेक दूसरा भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास। यह सुनते ही राजा दशरथ मूर्छित हो गए। होश में आने पर उन्होंने कैकेयी के वचन को पूरा करने का आश्वासन दिया। इसके बाद भगवान रामवन गमन की तैयारी शुरू कर देते हैं। जिनके साथ माता सीता, अनुज भ्राता लक्ष्मण के साथ पूरे अयोध्यावासी भी चल पड़ते हैं। इसको देखकर उपस्थित दर्शकों की आंखें भर आईं और वो भगवान श्रीराम की जय-जयकार करने लगे।
सरस्वती शिशु विद्या मंदिर इंटर कॉलेज शिवा कॉलोनी के बच्चों द्वारा की गई लीला के मंचन में श्रीराम वन में विचरण करते हुए शृंगवेरपुर में पहुंचते हैं। यहां उनकी मुलाकात बचपन के मित्र निषादराज भील से होती है। राम सुमंत से कहते हैं की सुमंत अब तुम जाओ और हमें वन में विचरण करने दो। मंत्री सुमंत अयोध्या की ओर लौट जाते हैं। निषादराज और राम-लक्ष्मण, जानकी चारों गंगा तट पर पहुंचते हैं। वहां केवट की प्रतीक्षा करते हैं। इसके बाद राम अपना हाथ केवट के सिर पर रख देते और केवट आनन्द पूर्वक उनके चरण धुलता है। भगवान जब उतराई देने लगे तो केवट ने बड़े ही चतुराई पूर्ण ढंग उतराई लेने से मना कर दिया, भगवान ने उसे अपनी अविरल भक्ति प्रदान की। भगवान गंगा पार करके ऋषि भारद्वाज जी के आश्रम जाते हैं, वहां से आगे ऋषि वाल्मीकि जी के आश्रम में ऋषि से भगवान की भेंट होती है और आगे चित्रकूट में निवास के लिए ऋषि वाल्मीकि जी सुझाव देते हैं।
भगवान पर्णकुटी का निर्माण कर चित्रकूट में निवास करते हैं और यही भगवान की शयन आरती होती है।
दर्शकों में अंकुर वर्मा, अशोक सिंह, आमोद उपाध्याय, उमेश त्रिपाठी, मनीष सिंह, मीना त्रिपाठी, पूनम, उर्मिला त्रिपाठी, अवधेश, मुक्तेश्वर नाथ आजाद, अंकुर यादव, सुनील यादव, रामगोपाल गुप्ता, गोपेश्वर त्रिपाठी, सी ए अभिषेक मणि त्रिपाठी, अनिल शुक्ल, चंदन सिंह, भोला नाथ चौधरी, अभय त्रिपाठी, अमन त्रिपाठी, आदि उपस्थित रहे।
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