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लंका में गरजे हनुमानजी, धू धू कर जली लंका

 लंका में गरजे हनुमानजी, धू धू कर जली लंका




बस्ती। श्री रामलीला आयोजन समिति के सप्तम दिवस के मंचन का शुभारंभ हनुमानजी के दिव्य भाव झांकी के समक्ष आरती के साथ प्रारंभ हुई आरती में मुख्य रूप से संजय उपाध्याय, डॉ आलोक पांडेय, जगदीश शुक्ल, अर्जुन उपाध्याय, राहुल सिंह, अनूप मिश्र, रजनीश त्रिपाठी, डॉ सुरभि सिंह, डॉ आर पी शुक्ल, पंडित चंद्रभाल तिवारी, उर्मिला त्रिपाठी, विजय उपाध्याय, अरविंद मिश्र, डॉ जी के शुक्ल,  संजय सिंह, अजय उपाध्याय, उमेश दूबे सहित विद्यालय परिवार के शिक्षक शिक्षिकाएँ सम्मिलित हुई।
पहला प्रसंग अशोक वाटिका में प्रसंग, लंका दहन, हनुमान जी की वापसी एसडीएस पब्लिक स्कूल खड़ौआ द्वारा प्रस्तुत किया गया।
तब लगि मोहि परखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई।।
हनुमान जी अपने साथी वानरों से कहते हैं कि जब तक मैं सीता माता की सुधि लेकर वापस न लौटूं तब तक तुम लोग मेरी प्रतीक्षा कंदमूल फल खाकर करना ऐसा कहकर जय श्री राम की घोर गर्जना करते हनुमान तीव्र छलांग लगते हैं और लंका की ओर चल देते हैं समुद्र के कहने पर मैनाक पर्वत हनुमान जी की सहायता करने के लिए ऊपर आते हैं हनुमान जी ने मैनाक पर्वत को अपने पैरों से छुए और फिर प्रणाम करके कहा है मैं  प्रभु श्री रामचंद्र जी का कार्य किए बिना मुझे विश्राम कहा मार्ग में सांपों की माता सुरसा बजरंगबली के बल बुद्धि विवेक का परीक्षण करने के लिए उनके भक्षण का आग्रह करती हैं बजरंगबली उनके मुख में प्रवेश करते हैं और छोटा रूप धारण कर बाहर निकल आते हैं तत्पश्चात सुरसा अपने आने का प्रयोजन बताती हैं और आशीर्वाद के साथ बजरंगबली को आगे की ओर प्रस्थान करने की अनुमति प्रदान करती हैं इसी प्रकार मार्ग में सिंहिका नाम की राक्षसी जो समुद्र में परछाई को पड़कर उनका भाषण करती है हनुमान जी की परछाई को पकड़ने पर उन्होंने वे उनका भी वध कर दिए और समुद्र पार कर लंका आ गए । पुर रखवारे देखि बहु कपि मन कीन्ह बिचारि अति लघु रूप धरों निसि नगर करो पइसार।।
हनुमान जी नगर में रखवाली कर रहे सेवकों से बचते हुए एक मच्छर के समान छोटा रूप धारण कर लंका में प्रवेश करते हैं किंतु इस समय लंका के द्वार पर पहरेदारी देने वाली राक्षसी लंकनी  से उनकी भेंट होती है । लंका में खोजते खोजते उन्हें विभीषण जी के घर का दिव्य भव्य स्वरूप दिखाई पड़ा जहां राम-राम का उच्चारण किया जा रहा था हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप धारण कर विभीषण का परिचय प्राप्त किया । विभीषण माता जानकी के हरण के कारण की व्याख्या कर माता जानकी का पता बतलाते हैं जो अशोक वृक्ष के नीचे निवास कर रहीं  है। कपि करि हृदय बिचार दीन्ही मुद्रिका डारि तब।
जनु अशोक अंगार दीन्ह हरषि उठि कर गहेउ।।
हनुमान जी ने सीता हनुमान जी ने सीता जी के समक्ष वह अंगूठी पर की जो प्रभु ने निशानी के तौर पर उनको दी थी सीता जी उसको पकड़ अत्यंत हर्षित हो जाती हैं तब हनुमान जी माता जानकी के समक्ष आते हैं और अपना परिचय बताते हैं और माता सीता को आश्वस्त करते हैं कि शीघ्र ही प्रभु लंका पर विजय प्राप्त कर आपको वापस लेकर जाएंगे माता को शंका होती है कि छोटे-छोटे बंदर किस प्रकार इस आता ताई पर विजय प्राप्त करेंगे तब हनुमान जी ने अपना विशाल शरीर प्रकट किया जिससे मां सीता के हृदय में विश्वास उत्पन्न हो गया फिर बजरंगबली ने माता से अनुमति मांगी की मां मुझे बहुत भूख लगी है मैं इस वाटिका में उपलब्ध फलों का भक्षण करूंगा और माता की अनुमति प्राप्त कर अशोक वाटिका में उपलब्ध फलों का सेवन कर अशोक वाटिका को पूरी तहस-नहस कर देते हैं उनके यहां का जम्मू माली मारा जाता है रावण को सूचना मिलती है रावण अक्षय कुमार को भेजते हैं जिनका बजरंगबली वध कर देते हैं तत्पश्चात मेघनाथ जाते हैं और ब्रह्मास्त्र का संधान कर बजरंगबली को बंदी बना लाते हैं रावण बजरंगबली के वचनों का उपहास उड़ाते हुए कहता है तेरी मृत्यु निकट आ गई है विभीषण बीच में रोकते हुए कहते हैं हे नाथ दूत को मारना कतई उचित नहीं है तब रावण बजरंगबली की पूंछ पर कपड़ा लपेटकर आग लगाने की आज्ञा देते हैं आज्ञा पाते ही राक्षस ऐसा करते हैं बजरंगबली वहां से बंधनों से मुक्त होकर लंका में दौड़ दौड़ कर महलों पर चढ़कर उनमें चारों ओर आग लगा देते हैं पूरी सोने की लंका धू धू कर जलने लगती है।
बजरंग बली की जय के जयघोष से पूरा पांडाल गूँज गया।
तत्पश्चात माता जानकी से आज्ञा लेकर हनुमान जी लंका से प्रस्थान करते हैं और समुद्र पार कर सभी बंदरो से मिलते हैं वह महाराज सुग्रीव से मिलकर माता सीता का कुशल छेम बतलाते हैं। इसके बाद श्री कृष्ण कुमारी पाण्डेय गर्ल इंटर कॉलेज के बच्चों द्वारा विभीषण शरणागति और शुक शारण संवाद व समुद्र पर कोप, सेतु निर्माण के प्रसंग का मंचन किया जाता है। बजरंगबली प्रभु श्रीराम से भेंट कर माता सीता की कुशल क्षेम बतलाते हैं और माता जानकी द्वारा दिये चूड़ामणि को भेंट किया। जिसे देख प्रभु भाव विभोर हो जाते हैं तब प्रभु राम सुग्रीव जी को आदेश देते हैं कि अब हमें विलंब नहीं करना चाहिए अपनी सेना तैयार कीजिए और हम सब लंका की ओर प्रस्थान करते हैं सभी वानर भालूगण प्रभु की जय-जय कर हर हर महादेव के उद्घोष के साथ तैयारी करते हैं। पापियों के नाश को धर्म के प्रकाश को एक नई जोत चली श्री रामजी की सेना चली। के उदघोष के साथ सेना लंका की ओर प्रस्थान करती है । गुप्तचर रावण को इसकी सूचना देते हैं। इस पर विभीषण रावण को समझाने का प्रयास करते हैं क्रोध में आकर रावण उन्हें अपने राज्य से निष्कासित कर देते हैं फिर विभीषण प्रभु श्री राम की शरण  में आ जाते हैं रावण इनकी सुधि लेने शुक और सारण दूतों को इनके पीछे भेजता है तभी वानर इनको पहचान कर पीटना शुरू कर देते हैं ये प्रभु राम की दुहाई देकर किसी प्रकार अपने प्राणों की रक्षा करते हैं। प्रभु श्री राम के प्रताप से प्रभावित शुक सारन ने भी रावण को माता जानकी को लौटाने की विनती की जिसे सुन रावण क्रोधित हो उन्हें भी निकाल देता है।। इधर राम चन्द्र जी समुद्र से विनती करते तीन दिन बीत जाने के उपरांत क्रोधित हो बाण का संधान करते हैं| विनय न मानति जलधि जड़ गए तीन दिन बीत ,बोले राम स्कोप तब भय बिनु होय न प्रीत।। तब समुद्र देव त्राहिमाम करते सम्मुख प्रकट होते हैं और नल नील को मिले वरदान का प्रयोग करते आप समुद्र पर पुल बनाइये और असुरों का संधान करिए। भगवान ने यही यत्न करते हुऐ, पुल का निर्माण किया। भगवान की सेना लंका के लिए प्रस्थान करती है।
यही पर की लीला का विश्राम होता है।
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