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श्री राम ने किया ताड़का वध, फुलवारी की मनोहारी लीला का हुआ मंचन



बस्ती। सनातन धर्म संस्था, द्वारा आयोजित श्री रामलीला महोत्सव के दूसरे दिन महेश प्रताप इंटर कॉलेज के बाल कलाकारों ने मुनि विश्वामित्र के आगमन, ताडका बध, सुबाहु बध तक की लीला और उसके बाद यूनिक साइंस एकेडमी के बाल कलाकारों द्वारा अहिल्या उद्धार, जनकपुरी में नगर भ्रमण, फुलवारी का मंचन किया गया। व्यास राजा बाबू पाण्डेय ने कथा सूत्र पर प्रकाश डालते हुये दर्शकों को बताया कि मुनि विश्वामित्र अयोध्या पहुंचे और राजा दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को यज्ञ रक्षा के लिये मांगा।
प्रभु श्री राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न के बड़े होने पर अयोध्या में मुनि विश्वामित्र का आगमन होता है. राजा दशरथ उनका खूब स्वागत सत्कार करते हैं। मुनि विश्वामित्र राजा दशरथ को बताते हैं कि वन में जब वे यज्ञ करते हैं तो राक्षस उन्हें तहस-नहस कर देते हैं। इसलिए वे यज्ञ की रक्षा के लिए राजा दशरथ से श्री राम और लक्ष्मण को साथ भेजने की बात कहते हैं। गुुरु वशिष्ठ के समझाने पर राजा दशरथ श्री राम और लक्ष्मण को मुनि विश्वामित्र के साथ भेज देते हैं।
मुनि विश्वामित्र ने रास्ते में श्री राम और लक्ष्मण को बताया कि इस जंगल में ताड़का नाम की राक्षसी का आतंक है जो लोगों को खा जाती है। इसी दौरान उनका सामना ताड़का से हो जाता है। ताड़का उन्हें देख उन पर आक्रमण कर देती है। इस पर श्री राम ताड़का का वध कर देते हैं। ताड़का के वध के बाद मुनि विश्वामित्र श्री राम और लक्ष्मण को लेकर आश्रम आ जाते हैं। मुनि विश्वामित्र आश्रम में शिष्यों के साथ यज्ञ कर रहे थे। मारीच और सुबाहु नाम के राक्षस यज्ञ को नष्ट करने के लिए पहुंच जाते हैं। श्री राम लक्ष्मण से उनका भीषण युद्ध होता है। अंत में श्री राम लक्ष्मण दोनों राक्षसों का वध कर देते हैं।
श्रीराम जी, लक्ष्मण जी की आरती के साथ आरम्भ श्रीराम लीला में दर्शक जमे रहे। पंकज त्रिपाठी ने श्रीराम महिमा के विविध विन्दुओं पर प्रकाश डाला। कहा कि श्रीराम कथा के श्रवण, दर्शन से जीवन का दुःख दूर होता है। रामलीला के कलाकारों ने दर्शकों का मन मोह लिया। ताडका बध, सुबाहु बध, अहिल्या उद्धार के प्रसंगों ने जहां लोगों को बांधे रखा वही जनकपुर के फुलवारी प्रसंग में दर्शकों को मनोहारी दृश्यों का दर्शन हुआ।
लीला में जनकपुर नगर भ्रमण, गंगा स्नान, ब्राह्मणों को दक्षिणा देना और फुलवारी प्रसंग हुआ। इस दौरान मौजूद श्रद्धालु जय श्री राम का का नारा लगाते हुए। लीला के विभिन्न प्रसंग देख आनंदित हुए।
लीला का आरंभ विश्वामित्र दोनों राजकुमारों राम और लक्ष्मण के साथ जनकपुर नगर भ्रमण से हुआ। गंगा नदी में स्नान कर गांग पुत्रों को दक्षिणा देते हुए पुन: मिथिला के नर नारियों से मिलकर मिथिलापुर के विभिन्न प्रतिष्ठानों का दर्शन करते हुए गुरु की आज्ञा से दोनों राजकुमार राजा जनक के सुंदर बागीचे में प्रवेश करते हैं। उस बागीचे की सुंदरता को देखकर दोनों मोहित हो जाते हैं।
बागीचे में उत्तरी छोर पर स्थित मां गिरिजा का अति शोभायमान मंदिर है। जहां जनक नंदिनी जानकी अपनी सखियों के साथ गौरी पूजन के लिए आती हैं। जहां एक बावरी सखी राम और लक्ष्मण की सुंदरता को देखकर मूर्छित हो जाती है और जाकर सीता से प्रभु श्रीराम के सुंदरता का बखान करती है। यह सुनकर सीताजी के भी मन में श्री राम को देखने की इच्छा जागृत हो जाती है। सीता जी जब प्रभु श्री राम के रूप और सौंदर्य को देखती हैं तो मोहित हो जाती हैं। यही स्थिति प्रभु श्रीराम के मन में भी पैदा होती है। दोनों कुछ देर तक एक दूसरे को देखते हैं। तत्पश्चात मां गिरिजा का पूजन करने के बाद सीता जी पुन: महल को लौट जाती हैं और प्रभु श्री राम और लक्ष्मण पुष्प लेकर विश्वामित्र के यहां आश्रम में पहुंच जाते हैं।
भगवान की आरती में राधेश्याम जायसवाल, आचार्य कृष्णमणि त्रिपाठी, राणा दिनेश प्रताप सिंह, गोपेश्वर त्रिपाठी, रामविलास शर्मा, डॉक्टर शैलेश सिंह, वीरेंद्र पांडेय, उमेश त्रिपाठी, राजेश श्रीवास्तव, अंशु श्रीवास्तव, दुर्गेश श्रीवास्तव, विदुसार सिंह, सुभाष वर्मा, मनीष सिंह, दुर्गा प्रसाद प्रजापति, पंडित पंडित वेंकटेश त्रिपाठी, अभय त्रिपाठी, भोलानाथ चौधरी, पवन मौर्य के साथ ही बड़ी संख्या में लोग शामिल रहे। संचालन  ने किया।

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