श्री रामलीला महोत्सव के छठवें दिन की लीला में प्रथम भाग में जागरण पब्लिक स्कूल के बच्चों की प्रस्तुति ने लोगों का मन मोहा
हे खग मृग हे मधुकर सैनी, तुम देखी सीता मृग नैनी
बस्ती। सनातन धर्म संस्था, बस्ती द्वारा बस्ती क्लब मे आयोजित श्री रामलीला महोत्सव के पंचम वर्ष की छठवें दिन की लीला में प्रथम भाग में जागरण पब्लिक स्कूल के बच्चों ने पंचवटी निवास, वनवासी जातियों को कृषि, शस्त्र, शास्त्र की शिक्षा, शुर्पणखा नासिका भंग, खर दूषण वध, सीता हरण, जटायु मरण, कबंध उद्धार करते हुये भगवान श्री राम जी भीलनी माता शबरी के आश्रम मे पहुँचते हैं और शबरी के जूठे बेर खाते हैं तक की लीला का मंचन किया। उसके पश्चात इंडियन पब्लिक स्कूल बच्चों ने श्री राम सुग्रीव मित्रता, बाली वध, वर्षा वर्णन, सीता माता की खोज, स्वयंप्रभा से भेंट, सम्पाती उद्धार से समुद्र तट पर विश्राम तक की लीला का बड़े ही वास्तविक ढंग से मंचन किया।
भगवान की आरती के साथ शुरू हुयी लीला में राकेश पाण्डेय, संयुक्त विकास आयुक्त- गोंडा, डॉ चंद्रप्रभा पाण्डेय, प्रेम श्रीवास्तव, श्री वीरेन्द्र सिंह, करुणासागर त्रिपाठी, कैलाश नाथ दूबे, हरि प्रसाद पाण्डेय, शेखर पाण्डेय, आर आर पाण्डेय, ए पी उपाध्याय, अशोक तिवारी, लीलावती शुक्ल ने आरती की।
लीला में दिखाया गया कि भगवान पर्णकुटी बनाकर पंचवटी में निवास करते हुये वनवासी जनजातियों को अस्त्र, शस्त्र, कृषि, सुंदर जीवन शैली, स्वाव्लम्बन की शिक्षा देते हैं, उनका शारीरिक सौष्ठव व उनके कला कौशल को देख दंडकारण्य वन की अधिष्ठात्री रावण की बहन शूर्पणखा उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखती है किन्तु एक पत्नी व्रत का संकल्प लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, लक्ष्मण व शूर्पणखा के बीच लम्बा संवाद होता है जिसपर लक्ष्मण जी द्वारा उसके नाक कान काट कर अप्रत्यक्ष रूप से रावण को चुनौती देते हैं की अब अधर्म का नाश होना सुनिश्चित हो चुका।
व्यास राजा बाबू पाण्डेय आगे की लीला का सूत्रपात करते हुये दर्शकों से कहते हैं की-
जिन्ह हरि भगति हृदयँ नहि आनी।
जीवत सव समान तेइ प्रानी।।
उन्होंने कहा की जो भी मनुष्य श्री हरि की भक्ति को अपने हृदय मे नही धारण करता वह जीवित रहते हुये भी शव के समान है।
आगे की लीला मे खर दूषण वध, सीता जी का हरण व जटायु मरण का दृश्य बहुत ही मार्मिक व सुंदर ढंग से जागरण पब्लिक स्कूल के बच्चों द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस विद्यालय की लीला का विश्राम शबरी जी के आश्रम मे नवधा भक्ति के ज्ञान के साथ हुआ।
अनुसुईया जी, शूर्पणखा, जटायु और शबरी के पात्रों ने लोगों का मन मोह लिया, सीता जी व भगवान श्री राम का साधारण मनुष्य की भांति विलाप सुन दर्शकों की आंसू आ गये।
कथा व्यास राजाबाबू पाण्डेय जी ने सूत्रपात करते हुये कहा कि- आगे चले बहुरि रघुराया,
ऋष्यमूक पर्वत निअराया।
इंडियन पब्लिक स्कूल के बच्चों द्वारा दिखाया गया कि भगवान श्री राम लक्ष्मण समेत सीता जी की खोज में ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचते हैं जहां बंदरों के राजा सुग्रीव निवास करते हैं, वो दोनों भाइयों के तेज को देख घबरा जाते हैं फिर वे हनुमानजी को उनका भेद लेने के लिए भेजते हैं। हनुमानजी एक ब्राह्मण के भेष में प्रभु की टोह लेने उनके पास जाते हैं प्रभु का परिचय रघुकुल नंदन श्री राम के रूप में जानने के बाद।
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना,
सो सुत उमा जाइ नहि बरना
हनुमानजी श्री राम जी के चरण में गिर पड़ते हैं क्षमा प्रार्थना कर दोनों भाइयों को अपने कंधों पर बिठा महाराज सुग्रीव के समीप लाते हैं । प्रभु का परिचय देकर वे सीता माता के अपहरण का पूरा वृतांत सुनाते है और अग्नि को साक्षी मान प्रभु श्री राम और सुग्रीव की मित्रता करवाते हैं। तब सुग्रीव उनको बताते हैं कि एक बार मंत्रियों के साथ बैठा था तब मैंने माता सीता को वायु मार्ग में किसी राक्षस द्वारा अपहरण कर ले जाते देखा था। माता ने हे राम कहते कुछ आभूषण यहां फेंके थे जिसे देख प्रभु भाव विह्वल जो जाते हैं सुग्रीव माता सीता को खोंजने में प्रभु की सहायता करने की शपथ लेते हैं। सुग्रीव अपने भाई बालि के भय का कारण बताते हैं प्रभु उनको आश्वस्त करते हैं कि वे बालि के भय से मुक्ति दिलाएंगे। प्रभु के आदेश पर वे बालि को युद्ध के लिए ललकारते हैं बालि सुग्रीव का भयंकर युद्ध होता है एक रूप होने के कारण प्रभु भ्रम में पड़ जाते हैं सुग्रीव पुनः शरणागत होते हैं अबकी बार प्रभु उन्हें माला पहनाकर भेजते हैं जिससे भ्रम रहित बालि का छिप कर संधान करते हैं बालि मरणासन अवस्था मे प्रभु से नीति विरुद्ध छिप कर प्राण हरण करने का कारण पूछते हैं तब प्रभु बताते हैं कि भाई की स्त्री, पुत्र की स्त्री और कन्या एक समान होती है इन पर कुदृष्टि डालने वाले के मारने में कोई भी पाप नही लगता। बाली का संधान कर सुग्रीव को राज्य का संचालन और बालि पुत्र अंगद को युवराज घोषित कर आशीष प्रदान करते हैं।
वर्षा ऋतु आ जाती है प्रभु प्रतिज्ञा के वशीभूत राज्य के बाहर ही वर्षा ऋतु बीत जाने की प्रतीक्षा करते है इधर सुग्रीव राज्य संचालन में अपनी प्रतिज्ञा को विस्मृत कर देते हैं तब बजरंग बली सुग्रीव को दिए वचन की सुधि दिलाकर वानरी सेना एकत्र करने का कार्य करते हैं। वानरी सेना एकत्र होती है और वे सभी दिशाओं में माता सीता की खोज में निकल पड़ते हैं।
उसके बाद आगे की यात्रा में उनकी भेंट स्वयंप्रभा से होती है जहां सब बंदर भालू जल पीकर प्यास बुझाते हैं।
हनुमानजी को समुद्र किनारे जटायु के भाई सम्पाती मिलते हैं वानरी सेना द्वारा जटायु की चर्चा सुन विह्वल हो जाते हैं और अपनी दिव्य दृष्टि से माता सीता का पता बताते हैं।
इस प्रकार समुद्र तट पर ही जामवंत जी द्वारा हनुमानजी के बल का उन्हें याद दिलाया जाता है और वही पर हनुमानजी की आरती के साथ लीला का विश्राम होता है।
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