विश्व पर्यावरण दिवस पर पढ़िए डा0 वी0 के0 वर्मा की यह रचना
विश्व पर्यावरण दिवस पर कुछ दोहे
सूख रही है नदी अब, चिंता का है प्रश्न।
लेकिन अपने रहनुमा, मना रहे है जश्न।।
अब चहुँदिशि पतझर हँसे, रोता आज बसंत।
भारत में होने लगा, हरियाली का अंत।।
व्याप्त प्रदूषण हृदय में, नहीं रहा अनुराग।
निर्दयता से कट गया, हरा भरा था बाग़।।
धीरे धीरे बोलिए, था जीवन का मन्त्र।
कान फोड़ने अब लगा, ध्वनि विस्तारक यन्त्र।।
करो प्रकृति की साधना, पेड़ काटना पाप ।
वरना “वर्मा” करेगी, प्रकृति न तुमको माफ़।।
2.
पर्यावरण दिवस आज है,
भाॅति-भाॅति के वृक्ष लगाओ।
अपनी कर्मठता से ’’वर्मा’’,
जीवन की बगिया महकाओ।
सपने में भी करो न ’’वर्मा’’,
प्रकृति-नटी का तनिक अनादर।
कद के ही अनुरूप हमेशा,
फैलाओ तुम अपनी चादर।
प्रकृति नटी के महाकोप से,
गिरी कोरोना की है गाज।
इसीलिए कहता हूँ ’’वर्मा’’,
पेड़ लगाओ जमकर आज।
पर्यावरण दिवस मनाओ,
अधिक से अधिक पेड़ लगाओ।
’’वर्मा’’ तुम अपने भारत को,
प्रदूषण से मुक्त कराओ।
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